बेजुबानों का दर्द कौन समझे : इंसानियत की सच्ची पहचान
हम सभी के आसपास ऐसे कई बेजुबान जीव रहते हैं, जो हमारी छोटी-छोटी मदद के लिए तरसते हैं। उन्हें न अपनी बात कहने का अधिकार है, न ही किसी से मदद मांगने का। उनका दर्द उनके मौन में छिपा होता है, जिसे समझने के लिए एक संवेदनशील हृदय की आवश्यकता होती है।
कल्पना कीजिए, यदि आप बीमार हों और कोई आपकी मदद न करे, तो कैसा लगेगा? यही दर्द बेजुबान जानवर भी महसूस करते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, हमारे समाज में उनकी चीख सुनने वाले बहुत कम हैं। हमें यह समझना होगा कि ये जानवर भी इस धरती पर हमारे साथ जीने का उतना ही अधिकार रखते हैं, जितना हम इंसानों का है।
इंसानियत का अर्थ केवल इंसानों की मदद करना नहीं, बल्कि हर उस जीव की सहायता करना है जो हमारी ओर आशा भरी नजरों से देखता है। उनकी भूख मिटाना, उनका उपचार करना या बस उन्हें दुलार देना—यह सब इंसान होने की पहचान है।
आज का समय हमें पुकार रहा है। क्या हम उन बेजुबानों की मदद के लिए आगे आएंगे जो खुद अपनी पीड़ा कहने में असमर्थ हैं? क्या हम समाज को एक ऐसा संदेश दे सकते हैं, जिससे हर वर्ग का व्यक्ति इंसानियत का परिचय दे? यह हमारा कर्तव्य है कि हम न केवल उनकी देखभाल करें बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करें कि वे इन प्राणियों के प्रति संवेदनशील बनें।
हमारा छोटा-सा कदम उनके लिए एक नई जिंदगी हो सकता है।
चलिए, आज से शुरुआत करें। किसी घायल कुत्ते को सहारा दें, किसी पक्षी को पानी दें, या किसी भूखे जानवर को भोजन दें। ये छोटे-छोटे प्रयास समाज में बड़े बदलाव का आधार बन सकते हैं। इंसान होने का यही धर्म है—दूसरों के दर्द को समझना और उन्हें सहारा देना।
हर वर्ग के व्यक्ति से मेरी अपील है: आइए, इंसानियत का यह बीज समाज में हर जगह बोएं और इस धरती को सभी जीवों के लिए रहने योग्य बनाएं।
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